दफ्न अब हो रहे रिश्ते भी दौलत तले
उसने मुझको जो दिखाई थी वो जन्नत कैसी
हुस्न वालों में वहाँ देखी नज़ाकत कैसी
दफ्न अब हो रहे रिश्ते भी दौलत के तले
सामने आयी है मेरे ये हकीकत कैसी
नदियां मिलती हैं जाकर समन्दर में ही
फिर भला तुमने उठाई है ये ज़हमत कैसी
मिलकर बिछड़ जाते है क्यों अपने हरदम
हमने अपने लिए पाई है ये किस्मत कैसी
काँटों पे चलके बनाई है ये किस्मत अपनी
हाथों में चाहे लकिरों की हो फ़ितरत कैसी
झूट को देते हैं ताक़त वो अंधेरी शब में
दिन के उजालें में फिर ये सदाक़त कैसी
बोलकर सच ही कँवल मोल ये ज़हमत ले ली
मिल गई बैठे बिठाये ये मुसीबत कैसी