दफ़न होता अफगानिस्तान
तालिबान के आतंकी और कट्टर इस्लामी इरादे अफगानिस्तान में नरक के दरवाज़े खोलने के सिर्फ़ चंद कदम ही दूर हैं। जैसे ही तालिबान औपचारिक रूप से सत्ता पर काबिज होंगे उनके मंसूबे रंग दिखाने शुरू कर देंगे। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण अभी से दिखने लगा है।
मानवता के विरुद्ध, कत्ल, लूट, रूढ़िवादी सोच, महिला–पुरुष विभेद, लैंगिक असमानता, अशिक्षा, गरीबी, धार्मिक कट्टरता, क्रूर पीड़ादायक सज़ा और न जाने कितने ऐसे शीर्षक बनने वाले हैं। जो अफगानिस्तान को न सिर्फ बर्बाद करेंगे बल्कि भारत जैसे अन्य देशों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनेंगे।इस आतंकी गुट और इस्लामी सरिया के कट्टरवाद सोच ने अफगानिस्तान में खून की नदिया बहाई हैं ,इसके पीछे जितना जिम्मेदार इस्लाम है उतना ही जिम्मेदारी का श्रेय अमरीका को भी देना चाहिए।
जिसने अपने आर्थिक और बदले की राजनीति के चलते एक सम्पूर्ण इतिहास को नर्क में धकेल दिया है।
करोड़ो महिलाओं और लड़कियों को जानवरों की भांति न मौत न जिंदगी, नागरिकों को बंधनों की ऐसी बेड़ियां जो ईश्वर ने भी नही सोची होगी।आतंकवाद के विरुद्ध और मानवता,अमन व शांति का चोला पहने वो सभी देश भी इसके लिए जिम्मेदार हैं जिन्होंने सिर्फ संगोष्ठियों में खुद को मानवता का दूत बताया है।
आवश्यकता थी, पूरी दुनिया को एक साथ मिलकर इस मानवता विरोधी विचारधारा के खात्में की।
अफगानिस्तान सिर्फ वहां के राष्ट्रपति ने नहीं छोड़ा है बल्कि दुनिया के उन देशों ने भी छोड़ दिया जिन्हें उनका साथ देना चाहिए था, उन देशों ने और भी बड़े गुनाह किए हैं जिन्होंने कत्ल होते मानवता से मुंह मोड़ लिया।