“थोड़ी सी आज़ादी उनके हिस्से भी आए”–कविता
वतन के ख़ातिर किए जितने
वीर जवानों ने सारे वचन निभाए
जिन्होंने इस मातृभूमि को अपना
तन मन अर्पण कर पहरें लगाए
थोड़ी सी आज़ादी उनके हिस्से भी तो आए
घरबार परिवार से बढ़कर
सारें सरोकार से बढ़कर
सरहदों पर दिन रात डटकर
जिन्होंने कई रात दिन बिताए
थोड़ी सी आज़ादी उनके हिस्से भी तो आए
जिनकी वजहा से महफूज़ है सरजमीं
जिनकी वजहा से महफूज़ है ये मुल्क़
वो दूर गए हैं इतना अपने घरों से
उनमें से कुछ लौटकर भी ना आए
थोड़ी सी आज़ादी उनके हिस्से भी तो आए
हम सो जाते हैं आँखें मूँदकर
घरों में अपने अच्छे खासे निडर
जो हमारे ख़ातिर ब्याबानों में
अपने सीनों पे गोली खाएं
थोड़ी सी आज़ादी उनके हिस्से भी तो आए
माँ भारती के ख़ातिर
विजयी तिरंगे के ख़ातिर
जो ख़ून का इक़ इक़ क़तरा
हंसते हंसते न्यौछावर कर जाए
थोड़ी सी आज़ादी उनके हिस्से भी तो आए
_____अजय “अग्यार