थोड़ी राह ही शेष है
पाँव में छालें बहुत हैं ,
दूर तक कैसे चलूँ ,
पथ तो है अग्नि सरीखा ,
पार अब कैसे करूँ ।
पाँवों के मेरे ये छालें,
मुझसे लेकिन कह रहे,
दूर तक तू तो चला है,
राह में क्यूँ थक रहे।
पाँव से चलता रहा है,
हौसले से अब तू चल,
इस अधूरी यात्रा को ,
पूर्ण करके ही ठहर ।
लम्बी दूरी चल चुका है,
थोड़ी राह ही शेष है ,
ख़ुद को क्यूँ कम आँकता है,
व्यक्ति तो तू विशेष है।
मार्ग के अवरोध से गर,
थककर ठहर जो जाएगा,
फिर कभी भी यात्रा ये,
क्या पूर्ण तू कर पाएगा!