थोड़ी देर ठहर जाओ
ऐ गमे-यार ठहर जाओ ना
रात बसर होने तक!
किसी तरह मुझे जी लेने दो
आज़ सहर होने तक!
मैंने कुछ अक्स बना रखे हैं
अपने ख्वाबों के यहां
तुम इन्हें रंगे-हिना देते रहो
खूने-जिगर होने तक!
Shekhar Chandra Mitra
ऐ गमे-यार ठहर जाओ ना
रात बसर होने तक!
किसी तरह मुझे जी लेने दो
आज़ सहर होने तक!
मैंने कुछ अक्स बना रखे हैं
अपने ख्वाबों के यहां
तुम इन्हें रंगे-हिना देते रहो
खूने-जिगर होने तक!
Shekhar Chandra Mitra