थोड़ा ( कुछ )
दर्द शमाँ
घटती जिंदगी
सांसो का आश
कभी मरती नहीं।
तिनको को जोड़ा
टूटते हुए, कगार पर
फिर मुझे मंजिल
तिनकों को नया रूप
करनी चाही थी ,मजबूती
टूटती चाह की थी।
आखिर मँजिल
अंजुल भर में भी रहे जिंदगी I _ डॉ. सीमा कुमारी , बिहार (भागलपुर ) I