थैला
काला पीला हरा गुलाबी,
श्वेत लाल या मटमैला।
कपड़ा,टाट,या कृतिम बना हो,
बड़े काम है थैला।
जीवन के हर पन में पल में,
उबड़ खाबड़ या समतल में।
सब सामान हैं लेकर जाते,
इसके बिन हम रह नहीं पाते।
मैं डंके की चोप पे कहता,
बड़े काम है थैला।
चड्ढी व लंगोटी ढोता,
खेतों में ये बीज है बोता,
डॉ की दवाई हो,
लुंगी कुर्ती टाई हो
चादर या रजाई हो।
सबका सब कुछ ले के जाता,
बड़े काम है थैला।
फत्ते का मलमल का कुर्ता,
या बेगम का काला बुरका।
तेली जी का तेलहन हो,
या बनिया का दलहन हो,
धोबी की धुलाई हो,
हलवाई की मिठाई हो,
सब भर लेता अपने अंदर ,
बड़े काम है थैला।
ननद और जेठानी का,
सेठ की सेठानी का,
बांदी राजा रानी का,
रामू की लुगाई का,
देवर और भौजाई का,
चाचा दादा दाई का,
चाची बप्पा माई का,
सबका समान ले जाता
बड़े काम का है थैला।
सरकार का बजट इसमें,
रेवड़ी,पेठा गज़क इसमें।
साड़ी साया चोली हो,
या सैनिक की गोली हो।
बल्ला या फुटबॉल हो,
मछुवारे का जाल हो।
इस बिन काम बने भी कैसे।
बड़े काम है थैला।
कुछ थैले कुदरत से पाए,
बिन इसके कुछ भी न सुहाए।
माँ का जेर गजब एक थैला,
दिल दिमाक झोला अलवेला।
श्रीराम की तुम्हे दुहाई,
इनकी सदैव करो सफाई।
अमासय क्या खास बनाया,
अब तक कोई भर नहीं पाया।
सदैव प्रभ का ध्यान करो,
गन्दी चीजों से न भरो।
पलना से होती शुरुवात।
शवपट में सब लिपटे जात।
बुढो बच्चों गोरी छैला,
गौर करो कभी न हो मैला।
इसीलिये तो कहता हूँ…
बड़े काम है थैला।
सतीश “सृजन”