‘था वो एक ज़माना’
था वो एक ज़माना!
बस अपना ख़ज़ाना!!
वो आसक्ति उन्मुक्त
हो के जताना!
वो टीका लगा के
लजाना लुभाना!!
वो जी भर के
आँसू से बातें बताना!
था वो एक ज़माना
बस अपना खजाना!!
वो पीतल के कलसों में
जल भर के लाना!
लिपी ड्योढ़ी को
कुछ निशाँ देके जाना!!
बसा है हृदय मे
वो ममता वो खाना!
था वो एक ज़माना
बस अपना खजाना!!
वो सूखे अधर
मुस्करा के बुलाते!
मस्तक पे रौनक से
सुधियाँ सजाते!!
वो चूनर से अंबर के
नखरे उठाना!
था वो एक ज़माना
बस अपना खजाना!!
वो खेतों की दौड़े
जो रिश्ते बटोरें!
सजा माँग-टीका
वो आँगन भी छोड़े!!
मिले ना कभी फिर
वो पीहर पुराना!!
था वो एक ज़माना
बस अपना ख़ज़ाना!!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ