थप्पड़
थप्पड़
थप्पड़ भी एक शिक्षक है
जिसका होना लाजमी है
जीवन में जीना सिखाता
बनता वही तब आदमी है।
परीक्षाओं के तप से तपकर
जिंदगी कंचन होती है
जब पड़े चांड लोहार की
धार तभी तो बनती है।
गलती पर थप्पड़ न खाए जो
सुधर कब हो पाता है
जब तक पढ़े न गुरुओं के थप्पड़
इंसान कहां बन पाता है।
मौसम के गर्म सर्द थपेड़ों से
पेड़ पौधे विचलित नहीं होते
आंधी तूफानों से लड़कर
वह साहस कभी नहीं खोते।
जो न खाए दुख का थप्पड़
सुख का अनुभव कब होता है
जिसने न खाई चोट कभी
पर पीड़ का अनुभव कब होता है।
जीवन के कठोर रास्ते ही
जीवन सफल बनाते है
हथोड़ा न खाए गरम लोहा तो
औजार कहां बन पाता है।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश