*…..थक सा गया हू…*
…..थक सा गया हू…
ऐ जिंदगी खुदको समझाते समझाते मुरझा सा गया हूं।
काँटो से लड़ते लड़ते
जिंदगी में ख्वाब से रूठने लगा हूँ
सपने देखते देखते।
थक सा गया खुदको आईना सा दिखाते दिखाते ,
खुदको दीपक सा जलाते जलाते,
थक सा गया हूँ,
वक्त के ढलते ,
चांद सा सफेद होते हुये
सितारों से गुफ्तगु करते करते ।
थक सा गया हूं…..
नौशाबा जिलानी सुरिया