थक चुका हूँ बहुत अब.., संभालो न माँ,
थक चुका हूँ बहुत अब…., संभालो न माँ,
अपने आंचल में मुझको.., छुपा लो न माँ।
मुद्दतों हो गईं………, जागते……., जागते,
अब तो गोदी में अपनी…, सुला लो न माँ।
की जो शैतानियाँ………! भूल जाओ मेरी,
हूँ मैं नादां……., गले से…, लगा लो न माँ।
खो गया बचपना….., हादसों में….., कहीं,
फिर से उंगली पकड कर चला लो न माँ।
अश्क आंखों में आकर……, ये कहने लगे,
ख्वाब ऑखों में’ फिर से सजा.. लो न माँ।
वक्त यू ही गुज़रता….., चला जा……, रहा,
क़ैद मुट्ठी में करना……., सिखा लो न माँ। (गिरह)
खत्म कर दे न ये कशमकश…,जीस्त को,
इस “परिद” को अब तुम बचा., लो न माँ।
पंकज शर्मा “परिंदा”