थक गई थी
थक गई थी सबकी परवाह करते करते
जब से बेपरवाह हुई एक आराम सा है
भीड़ बहोत है तेरे शहर में फिर भी हर एक शक़्स तन्हा सा है
लाख बनाले एक बनावटी मुस्कान
फिर भी गालों पे तेरे अश्क़ बिखरा सा है
सोचा था थम जाएगा ये सिलसिला बस यूं ही अचानक
सब कुछ फिर भी आज बदला सा है।