* थके नयन हैं *
** गीतिका **
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राह देखते थके नयन हैं, आ जाना करना नहीं देर।
देखो सुन्दर नीले नभ को, श्याम घटाएं रही हैं घेर।
सावन का मौसम आने में, अब तो थोड़ा समय है शेष।
किन्तु हृदय व्याकुल इतना है, कैसा है ये समय का फेर।
भिन्न भिन्न मौसम का अपना, भिन्न भिन्न होता अंदाज।
पतझड़ में सूखे पत्तों के, हर जगह पर लग जाते ढेर।
सबके हित की चिंता होती, सबको मिला करता है न्याय।
आदर्श व्यवस्था में बिल्कुल, होता कोई नहीं अंधेर।
चुपके कष्ट सहन कर लेते, आगे आते सदा निस्वार्थ।
केवल मन के सच्चे होते ,होते न हमेशा धन कुबेर।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २७/११/२०२३