तज़ुर्बा
जो बात कभी हंसी मे उड़ाई थी
वो आज मुझपे हँसती लौटी है।
वो मुझसे भी बड़ी हो गयी है अब
जिसे कहा था, चुप कर, अभी तू छोटी है
जवाब काफी थे कभी किसी वक़्त
फेहरिस्त सवालों की अब उससे मोटी है
वक़्त बदला है मेरा, तेरा भी कभी बदलेगा
कहकहों के बाद, मुमकिन है , खरी खोटी है
बेफिक्री कहाँ टिक के रहती है
खिंचेगी देखना एक रोज, जो इसकी चोटी है।
तजुर्बे ,कहाँ , कब, किसे रास आये है।
तू सच पकड़ के रख तेरा, मेरी ही बात झूटी है।