तख़्ता डोल रहा
ग़ज़ल
अब वक्त उसी का बोल रहा
उल्टा जिसका भूगोल रहा
हुश़्न ए मतला
बिन मौसम बादल बोल रहा
तन-मन मेरा यूँ डोल रहा
कब राह चला सीधी सच्ची
जीवन में नित विष घोल रहा
जब शोर हुआ मोदी-मोदी
बैरी का तख़्ता डोल रहा
उस का ही सिक्का चलता है
खुद में ही जो अनमोल रहा
पार्टी करती नारेबाज़ी
अब बैरी पत्ते खोल रहा
कुर्सी पर हाथ रखा जिसने
बस सुधा उसी का मोल रहा
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
1/10/2022
वाराणसी ,”©®