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16 May 2024 · 1 min read

त्रिलोकीनाथ

बुलाऊॅं जब कभी उनको,जगत के नाथ आते हैं।
कभी कोई नहीं सुनते, तभी श्री कृष्ण आते हैं।

चले दौड़े वहाॅं झटपट , त्रिलोकी नाथ हैं जाते,
मगन होकर बुलाने से, वही साड़ी बढ़ाते हैं।

पुकारा जब वहां गज ने,गई अब जान है मेरी,
कहानी ये पुरानी ग्राह, से गज को छुड़ाते हैं।

कहाॅं छलिया यहाॅं रहते,कहे जब व्यंग्य से कोई ,
तभी नरसिंह बनकर वे ,वहीं खंभे हिलाते हैं।

उन्हीं को याद रहते हैं,सभी तो भूल ही जाते,
कभी अवसाद में जाते,वही ढांढस बंधाते हैं।

कभी हम खिलखिला कर के,उन्हीं के गीत हैं गाते,
फॅंसे जब जीव मुश्किल में,मगन मन हो बुलाते हैं।

सुदामा नाम सुनते ही, चले वे दौड़कर आते,
कभी वे मुस्कुराते हैं, कभी वे डबडबाते हैं।

डी एन झा दीपक देवघर झारखंड

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