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4 Mar 2021 · 1 min read

त्रासदी

जनसंख्या और बेरोजगारी ले डूबेगी
यदि नहीं रुकी तो भीषण
त्रासदी फूटेगी।

बेतहाशा बढ़ते वाहनों का शोर
जीते जी कहीं रुला न दे,
धू – धू जलता वायुमंडल
वायु में जहर घोलता धुऑं
कहीं मौत की नींद न सुला दे ।

नितांत अकेला आदमी;
मिलता नहीं कहीं ठौर
रिश्तों को बेबजह ढोता
मोबाइल का दौर ।

हम किसे सुना रहे हैं?
और क्यों सुना रहे हैं?
बेफिजूल की बातें !
कौन समझेगा ?
व्यर्थ ही बुदबुदा रहे हैं।

जो होने वाला है, वही हो रहा है
जो हो रहा है, सही हो रहा है ।

मशीनी युग का जोर ,
बदलाव की तीव्र हवा
विनाश का संकेत
मूरख हृदय न चेत ।

जगदीश शर्मा
(०१०३२०२१)

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 495 Views
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