त्रासदी
जनसंख्या और बेरोजगारी ले डूबेगी
यदि नहीं रुकी तो भीषण
त्रासदी फूटेगी।
बेतहाशा बढ़ते वाहनों का शोर
जीते जी कहीं रुला न दे,
धू – धू जलता वायुमंडल
वायु में जहर घोलता धुऑं
कहीं मौत की नींद न सुला दे ।
नितांत अकेला आदमी;
मिलता नहीं कहीं ठौर
रिश्तों को बेबजह ढोता
मोबाइल का दौर ।
हम किसे सुना रहे हैं?
और क्यों सुना रहे हैं?
बेफिजूल की बातें !
कौन समझेगा ?
व्यर्थ ही बुदबुदा रहे हैं।
जो होने वाला है, वही हो रहा है
जो हो रहा है, सही हो रहा है ।
मशीनी युग का जोर ,
बदलाव की तीव्र हवा
विनाश का संकेत
मूरख हृदय न चेत ।
जगदीश शर्मा
(०१०३२०२१)