त्याग “शूरवीरों” का
क्षमा कर माँ तेरे पुकारने पर भी मैं आ न सका।
तेरे आँचल में मेरा सिर सुकून से लिटा न सका।
न थामी बापू की लड़खडा़ती कमजोर सी लाठी।
है खेद उनकी अर्थी को कान्धा मैं लगा न सका।
न विदा की सजाकर डोली मेरी प्यारी बहन की।
भाई घोड़ी चढ़ा मैं माथे पे सेहरा सजा न सका।
मुझे याद है नन्ही परी जब अपने घर जन्मी थी।
उसे गोद में ले पहली दफा सीने से लगा न सका।
सात फेरों की कसमें और सात जन्मों का वचन।
माफ कर मैं पहला जन्म भी ठीक निभा न सका।
तुम्हारे साथ से सफल रहा अर्थ मेरी शहादत का।
तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य हर कोई पा न सका।
वादा है मैं फिर जन्म लूंगा मेरी जन्मभूमि के लिए।
वो शपथ फिर निभाउ जो इस जन्म निभा न सका।
-शशि “मंजुलाहृदय”