तौबा तौबा
डॉ अरूण कुमार शास्त्री 💐 एक अबोध बालक💐 अरुण अतृप्त
तौबा तौबा
मैं आदतन चीजों को
तरतीब से समाहलने
के लिए मशहूर था
पर असलियत ये थी
के मै बहुत मजबूर था
हर चीज़ मैंने संभाली
पूरे ऐतिहात से जब जब
वो उतनी ही उलझ गई
कोशिश करी मैं ने सब
कुछ खुदाई ख़ुदा की
कुछ सितम ज़माने का
रह न पाया इत्मिनान से
ये बात थी बेहद गज़ब
फिर छोड़ कर देखा
उसके उसूलों पर एक दिन
जो जैसा है छोड़ दिया
वैसा ही अल्लाह के नाम पर
चीजें न रहनी थी न रही
उस मुताबिक कर लो यक़ीन
लेकिन इक बात मेरी
समझ में आ गईं लजीज़
तेरे किये से कब चला
ज़माना , ज़माना तो चलेगा
अपनी चाल से उसको
न कभी आजमाना मेरे ख्याल से
मैं आदतन चीजों को
तरतीब से समाहलने
के लिए मशहूर था
पर असलियत ये थी
के मै बहुत मजबूर था