तो लोग समझे
जब उन के घर भी सितम की आतिश के ज़द में आए तो लोग समझे।
अदावतों के नगर में शोले भङकते देखे तो लोग समझे।
जो लोग हम से ये कह रहे थे है बाग़बाँ से अबस ही नफ़रत।
मुहब्बतों के शजर चमन में जब उस ने काटे तो लोग समझे।
मुहब्बतों के जो हैं पुजारी हैं उन के हिस्से में सिर्फ़ काँटे।
जो फित्नागर थे वो मसनदों पर जब आ के बैठे तो लोग समझे।
समझ रहे थे जिसे मसीहा हक़ीक़तन है बङा ही क़ातिल।
जब अपने ज़ख़्मों को वो किसी को दिखा न पाए तो लोग समझे।
तमाम सपने थे उस के झूठे तमाम वादे थे उस के जुमले।
मुसीबतों के पहाङ उन पर जब उस ने तोङे तो लोग समझे।
मुहब्बतों का नहीं है पैकर वो आदमी तो है फित्ना परवर।
पङे हुए थे जो उस के चेहरे पे पर्दे उतरे तो लोग समझे।
सख़ावतों का ज़माना जिस की ‘क़मर’ ये गुनगान कर रहा था।
सभी सवाली जब उस के दर से निराश लौटे तो लोग समझे।
जावेद क़मर फ़िरोज़ाबादी