तो मैं उसी का
ग़ज़ल
सबब बने जो मेरी ख़ुशी का.. तो मैं उसी का
या कोई पैकर¹ हो सादगी का.. तो मैं उसी का
शराब-ओ-साक़ी ये जाम-ओ-मीना नहीं ज़रूरी
जो आँख दे लुत्फ़ मय-कशी का.. तो मैं उसी का
न है तख़य्युल² न है तग़ज़्ज़ुल³ मेरे सुख़न⁴ में
हो फ़िक्र-ओ-फ़न⁵ जिसमें शाइरी का.. तो मैं उसी का
यहाँ तो सब के हैं हम-पियाला व हम-निवाला
अभी तलक जो नहीं किसी का.. तो मैं उसी का
बड़ा है क़द आप का, मैं अदना मुआफ़ कीजै
मिलेगा कोई बराबरी का.. तो मैं उसी का
अना⁶ के घर से निकल के बाहर मेरी तरफ़ जो
बढ़ाएगा हाथ दोस्ती का.. तो मैं उसी का,
उदासियों के हैं घुप अँधेरे ‘अनीस’ दिल में
दरीचा खोले जो रौशनी का.. तो मैं उसी का
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.देह, शरीर 2.कल्पना 3.ग़ज़ल का ढंग 4.शायरी 5.भाव और शिल्प 6.अहंकार