तो जानो आयी है होली
तो जानो आयी है होली
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गुन गुन करता भाख रहा हो,
पकवानों को पाक रहा हो,
घूंघट से कोई झाँक रहा हो,
खोल किवाड़े ताक रहा हो।
इतने पर कोई आ जाएं,
जिसे देख गोरी शरमाये।
साजन बोले मीठी बोली।
तो जानो आयी है होली।
अमराई में बौर टंगे हों,
फागों के कई दौर लगे हों,
चल रही धीम बयार कहीं गर,
हो रही सुगन्ध पसार कहीं गर।
हरी डाल लें रही हो झटके,
मधुमक्खी छत्ता यूँ लटके।
लगता लटकी काली झोली।
तो जानो आयी है होली।
झुकी हुई हों गेहूं बालें,
गलबहियां सरसों से डाले,
महुवा गुच्छे में फूले हों,
उन पर बहु भाँवरे झूले हों।
सजनी द्वार बुहार रही हो,
मन में कर मनुहार रही हो।
साजन कर दे हसीं ठिठोली।
तो जानो आयी है होली।
चारों ओर मचे खग चहकन,
पायल बोले छन छन छन छन,
परदेशी घर वापस आये,
मुश्काये तो मन को भाये।
चुपके से दर्पण के आगे,
देख देख सजनी शरमाये।
पहने रंग विरंगी चोली।
तो जानो आयी है होली।
फागुन है ख़ूब होली खेलो,
प्रेम गुलाल कहीं हो ले लो।
‘सृजन’ चार दिनों का पन है,
पल पल बीत रहा यौवन है।
कभी कभी परमार्थ कमा कर,
राम नाम का दाम जमा कर।
जीवन हो जाये चन्दन रोली।
तो जानो आयी है होली।
-सतीश सृजन