तो चलूं।
मय मयस्सर हो तुम्हारी आँखों में अगर ,
ज़रा पीं लूं तो चलूं ,
ज़िंदगी सी हो तुम ऐ हसीं तुम्हें ,
ज़रा जी लूँ तो चलूं ,
हो गुस्ताख़ी माफ तो राज़-ए-दिल ,
ज़रा खोलूं तो चलूं ,
हो इजाज़त तो हाल-ए-दिल ,
ज़रा बोलूं तो चलूं ,
अल्फ़ाज़ में सजा के हर ख़्याल ,
ज़रा कह लूं तो चलूं ,
लहराती-इठलाती तुम्हारी ज़ुल्फों में,
ज़रा रह लूं तो चलूं ।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।