तो खुदा मिलता नहीं।
बिन कलमा के कोई मुसलमाँ होता नहीं |
अगर ना हो नमाजें तो खुदा मिलता नहीं ||1||
क्यों ढूढता है तू ऐसे उनके मोजीजे को |
ये मोहम्मद का असर है जो दिखता नहीं ||2||
है खुदा के बाद नाम मोहम्मदे रसूल का |
यह वसीला किसी और को मिलता नहीं ||3||
कोई कह दे शिर्क करने वाले काफिरो से |
यह सर खुदा के बाद कहीं झुकता नहीं ||4||
इबादत से मिलती है सुकून-ए-जिंदगी |
फिर तू क्यों खुदा की राह में चलता नहीं ||5||
है तुझे पता ही नहीं मां-बाप के वजूद का |
ये पूंछ उनसे जिन्हें ये साया मिलता नहीं ||6||
असर क्या है कलमें में तू पूंछ ना उससे |
उसे क्या पता जिसे वह कभी पढ़ता नहीं ||7||
मत पाल खुद में खुशफहमियाँ ऐ इन्सान |
गुलामे रसूल का दर्जा सबको मिलता नहीं ||8||
ताज मोहम्मद
लखनऊ