तो क्या होगा?
मेरे बाबुल की गुड़िया हूं, मुझे मां ने संवारा है,
तू मिट्टी का खिलौना ही, समझ बैठा तो क्या होगा?
बड़े नाजों से पाला है, फूलों सा संभाला है,
तू कोई दाग दामन पर लगा बैठा तो क्या होगा?
मेरी दहलीज तक आकर, तू अंदर झांक लेता है,
किसी दीवार से दिल में उतर बैठा तो क्या होगा?
अभी दिन सर्दियों के है, तुझे मैं धूप लगती हूं,
कभी पतझड़ में तू मुझको,झटक बैठा तो क्या होगा?
मेरा मरहम बनेगा तू , चलो मैं मान लेती हूं,
तू जख्मों से बड़ा नासूर बन बैठा तो क्या होगा?
तुझे मन में बसा तो लूं,तेरी मूरत सजा तो लूं,
किसी मेहमान सा तू उठ के चल बैठा तो क्या होगा?
मैं राजी हूं, मेरी इक शर्त है, तू रूह तक आना।,
फकत तू जिस्म तक आकर, ठहर बैठा तो क्या होगा?
15/09/20
रिया ‘प्रहेलिका’