” तो क्या जिया ! “
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एक ही तो जिंदगी है इस हिसाब से कर्म ना किया ,
तो क्या किया !
इस जिंदगी को दुसरो के हिसाब से बदल बदल कर जिया ,
तो क्या जिया ।।
किसी की दी खुशी – प्यार को भूला कर कई अलमारी किताब याद किया तो ,
तो क्या किया !
खुद दर्द की गहराई को जान कर भी किसी को दर्द में तड़पते छोड़ दिया ,
तो क्या जिया ।।
जो जिसका है उसे देकर अपने बारी का इंतजार नहीं किया ,
तो क्या किया !
इस एकलौती जिंदगी को अपने उसूलों पर ना जिया ,
तो क्या जिया ।।
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? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली