तोर गाम कतह(कविता)
गाम गाम
शहर शहर
घुरि घुरि घुमि क’
तों घुरि रहल छह
माटि केर माथ पर
लेप चानर जकाँ
तो चुमी रहल छह
हौ सुनह बटोही
तोर गाम कतह ?
फाटल छिटर
दूटा कुरता धोती
आँखि पर चश्मा
जन कल्याण’क लेल
झोरा झंडा लऽ
ठंढ़ी मे सिहकि रहल छह
हौ सुनह बटोही
तोर गाम कतह ?
जंगल झार विरन मे
कुसुम फुल केर देखि क’
गीतनाद गाबि रहल छह
संस्कृति विस्तार’क लेल
सुरुजक धाह मे कुदि रहल छह
हौ सुनह बटोही
तोर गाम कतह ?
लागै जेना भिखारी छह
गंगा जलसँ पाएर पखार’ केर
बड़का अधिकारी छह
दुनियाँ चाहे कहै तोरा नटूआ
नहि जानि विद्यापति सँ आगु
तोहि रहै जन केर एकटा सखुआ
सारण केर दुलरा बउआ
बिहार’क लाल
धन्य हमर तोहर पाएर पखारू
चलू अप्पन गाम घुरा दू !
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य
क्रमशः -…………