तोँ सबसँ सुनर प्रिये हमर,राधा रानी(कविता)
तोँ सबसे सुनर प्रिये हमर,राधा रानी ।
जिनगीक सप्पन बिनु तोहर नै आबै,
नै रूसू हमरासँ ,कखनो दूरी नै जाउ,
हम नहि छि गंगा जमुनाक बहैत पानि ।
तोरा बिनु इ प्राण निकलि नै जाये
तुअ हमर हिय के सदा भाये रानी !
तोँ सबसँ सुनर प्रिये हमर,राधा रानी ।
नितु सदिखन चरण वंदन हमर
आशीष पाबि कऽ खिल मुखड़ा मुस्कुराबै
बंसुधारा संस्कार संस्कृति के तोँ नारी !
धन्य हमर अप्पन जिनगी कोना नै कहुँ
पावन ब्रजभूमि भू सँ हो आइल
तोँ सबसे सुनर प्रिये हमर,राधा रानी ।
वेद पुराणो मे पढलौ कतौ
प्रेम स्नेह संस्कार मान मर्यादा भारत के
ब्रजभूमि मिथिला गौरव सदा चलि आइल
तोर वाणी के मिठास मन मोहय हमर रानी
नव जयदेव कें सुशीला जेहन अहाँ
तोँ सबसे सुनर प्रिये हमर,राधा रानी ।
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य