Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2023 · 2 min read

तेवरी कोई नयी विधा नहीं + नीतीश्वर शर्मा ‘नीरज’

———————————–
‘आम’ को ‘इमली’ कह देने से उसके स्वाद और गुण में जिसतरह कोई अन्तर नहीं आता, ठीक उसीतरह नयी कविता की वैचारिकता को काव्य की किसी भी विधा में प्रस्तुत करने से उसके भाव और अनुभूति की अभिव्यक्ति में कोई फर्क नहीं आता है, ऐसा मैं मानता हूँ। मैं विषय की प्रधानता को केन्द्र मानकर मूल्यांकन करने का पक्षधर हूँ। किसी विधाविशेष की वकालत मुझे रास नहीं आती।
आज ‘हिंदीग़ज़ल’ नाम से रचनाएँ सामने आ रही हैं और तेवरी-अभियान से जुडे़ मित्र जो ‘तेवरी’ नाम से दे रहे हैं, उसके मूल में प्रवेश करने पर मुझे कोई खास अंतर नहीं लगता। इसी तरह कई अग्रज कवियों ने इस आकार में लिखी जाने वाली रचनाओं को अपने-अपने ढँग से संज्ञा दी है, जैसे- गीतिका, गीतल, अनुगीत आदि-आदि। इससे विचारों में कहाँ कोई फर्क आया?
बात तो अपने-अपने ढँग से हम आज भी वही कर रहे हैं। सिर्फ तर्जे-बयां बदला है, बयान हम सबका एक ही है। उर्दू साहित्य में भी प्रवेश करें तो गालिब, मीर, जफर और फैज की ग़ज़लें एक ही विषयवस्तु की प्रस्तुति लगती हैं? उसी तरह निराला, मुक्तिबोध, धूमिल आदि कवियों ने जो हमें अपनी रचनाओं में दिया, वह विधाविशेष से पहचानी जाती हैं या विचार की प्रधानता से?
मैं तेवरी को काव्य की कोई नयी विधा नहीं मानता, बल्कि ग़ज़ल या दोहे का रूप लिए [आकार में लिखी गयी] कविताओं का नया नाम है-‘तेवरी’। जिस तरह एक कप या गिलास में आप दूध भी रख सकते हैं, दवा भी, शराब भी, पानी भी और जहर भी। लेकिन रखे जाने द्रव के आधार पर गिलास या कप का नाम बदलने से उसमें क्या तब्दीली हो जायेगी? उसे गिलास या कप कहने में आपको दिक्कत क्यों महसूस हो रही है? ‘ग़ज़ल’ को भी मैं व्यक्तिगत तौर पर उसी ‘गिलास’ की तरह इस्तेमाल कर रहा हूँ। हमारे पूर्ववर्ती कवियों ने इसमें हुस्नो-इश्क की शराब भरी, अश्कों से लबरेज किया। हम आज उसमें अपने-अपने विचारों की तल्खी और खूने-जिगर भर रहे हैं। अब इस आधार पर आप उस ‘गिलास’ को ‘ग़ज़ल’ कहें या तेवरी, कोई अन्तर नहीं आता। हाँ जो रूप पर मोहित हैं और जिन्हें आत्मा की पहचान नहीं, उन मित्रों को शायद इसमें अन्तर दिखाई पड़े।
आपके तेवरी अभियान की सफलता की दुआ इसलिए कर रहा हूँ कि यह चाहे जिस नाम से भी हो, आप मेरी ही आवाज में आवाज मिला रहे हैं और वह आवाज आज के हर दलित, पीडि़त और शोषित इंसान की है।

Language: Hindi
45 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वादी ए भोपाल हूं
वादी ए भोपाल हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
■ दोहात्मक मंगलकामनाएं।
■ दोहात्मक मंगलकामनाएं।
*प्रणय प्रभात*
शाम
शाम
N manglam
दोस्ती एक पवित्र बंधन
दोस्ती एक पवित्र बंधन
AMRESH KUMAR VERMA
सोई गहरी नींदों में
सोई गहरी नींदों में
Anju ( Ojhal )
2327.पूर्णिका
2327.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मुल्क
मुल्क
DR ARUN KUMAR SHASTRI
क्रिकेटफैन फैमिली
क्रिकेटफैन फैमिली
Dr. Pradeep Kumar Sharma
वाह ! मेरा देश किधर जा रहा है ।
वाह ! मेरा देश किधर जा रहा है ।
कृष्ण मलिक अम्बाला
अपनी सीरत को
अपनी सीरत को
Dr fauzia Naseem shad
दिल के रिश्ते
दिल के रिश्ते
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
वो पहली पहली मेरी रात थी
वो पहली पहली मेरी रात थी
Ram Krishan Rastogi
जय संविधान...✊🇮🇳
जय संविधान...✊🇮🇳
Srishty Bansal
ग़ज़ल (चलो आ गयी हूँ मैं तुम को मनाने)
ग़ज़ल (चलो आ गयी हूँ मैं तुम को मनाने)
डॉक्टर रागिनी
भूल
भूल
Dr.Pratibha Prakash
हारने से पहले कोई हरा नहीं सकता
हारने से पहले कोई हरा नहीं सकता
कवि दीपक बवेजा
*चलता रहता है समय, ढलते दृश्य तमाम (कुंडलिया)*
*चलता रहता है समय, ढलते दृश्य तमाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
समय को पकड़ो मत,
समय को पकड़ो मत,
Vandna Thakur
कविता(प्रेम,जीवन, मृत्यु)
कविता(प्रेम,जीवन, मृत्यु)
Shiva Awasthi
तुम करो वैसा, जैसा मैं कहता हूँ
तुम करो वैसा, जैसा मैं कहता हूँ
gurudeenverma198
जीवन में सफलता छोटी हो या बड़ी
जीवन में सफलता छोटी हो या बड़ी
Dr.Rashmi Mishra
सृजन तेरी कवितायें
सृजन तेरी कवितायें
Satish Srijan
सिंदूर 🌹
सिंदूर 🌹
Ranjeet kumar patre
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelam Sharma
ਯਾਦਾਂ ਤੇ ਧੁਖਦੀਆਂ ਨੇ
ਯਾਦਾਂ ਤੇ ਧੁਖਦੀਆਂ ਨੇ
Surinder blackpen
यह जो तुम कानो मे खिचड़ी पकाते हो,
यह जो तुम कानो मे खिचड़ी पकाते हो,
Ashwini sharma
ईमान धर्म बेच कर इंसान खा गया।
ईमान धर्म बेच कर इंसान खा गया।
सत्य कुमार प्रेमी
शीर्षक - घुटन
शीर्षक - घुटन
Neeraj Agarwal
तो मैं राम ना होती....?
तो मैं राम ना होती....?
Mamta Singh Devaa
पिता
पिता
Swami Ganganiya
Loading...