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7 Dec 2023 · 2 min read

तेवरी कोई नयी विधा नहीं + नीतीश्वर शर्मा ‘नीरज’

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‘आम’ को ‘इमली’ कह देने से उसके स्वाद और गुण में जिसतरह कोई अन्तर नहीं आता, ठीक उसीतरह नयी कविता की वैचारिकता को काव्य की किसी भी विधा में प्रस्तुत करने से उसके भाव और अनुभूति की अभिव्यक्ति में कोई फर्क नहीं आता है, ऐसा मैं मानता हूँ। मैं विषय की प्रधानता को केन्द्र मानकर मूल्यांकन करने का पक्षधर हूँ। किसी विधाविशेष की वकालत मुझे रास नहीं आती।
आज ‘हिंदीग़ज़ल’ नाम से रचनाएँ सामने आ रही हैं और तेवरी-अभियान से जुडे़ मित्र जो ‘तेवरी’ नाम से दे रहे हैं, उसके मूल में प्रवेश करने पर मुझे कोई खास अंतर नहीं लगता। इसी तरह कई अग्रज कवियों ने इस आकार में लिखी जाने वाली रचनाओं को अपने-अपने ढँग से संज्ञा दी है, जैसे- गीतिका, गीतल, अनुगीत आदि-आदि। इससे विचारों में कहाँ कोई फर्क आया?
बात तो अपने-अपने ढँग से हम आज भी वही कर रहे हैं। सिर्फ तर्जे-बयां बदला है, बयान हम सबका एक ही है। उर्दू साहित्य में भी प्रवेश करें तो गालिब, मीर, जफर और फैज की ग़ज़लें एक ही विषयवस्तु की प्रस्तुति लगती हैं? उसी तरह निराला, मुक्तिबोध, धूमिल आदि कवियों ने जो हमें अपनी रचनाओं में दिया, वह विधाविशेष से पहचानी जाती हैं या विचार की प्रधानता से?
मैं तेवरी को काव्य की कोई नयी विधा नहीं मानता, बल्कि ग़ज़ल या दोहे का रूप लिए [आकार में लिखी गयी] कविताओं का नया नाम है-‘तेवरी’। जिस तरह एक कप या गिलास में आप दूध भी रख सकते हैं, दवा भी, शराब भी, पानी भी और जहर भी। लेकिन रखे जाने द्रव के आधार पर गिलास या कप का नाम बदलने से उसमें क्या तब्दीली हो जायेगी? उसे गिलास या कप कहने में आपको दिक्कत क्यों महसूस हो रही है? ‘ग़ज़ल’ को भी मैं व्यक्तिगत तौर पर उसी ‘गिलास’ की तरह इस्तेमाल कर रहा हूँ। हमारे पूर्ववर्ती कवियों ने इसमें हुस्नो-इश्क की शराब भरी, अश्कों से लबरेज किया। हम आज उसमें अपने-अपने विचारों की तल्खी और खूने-जिगर भर रहे हैं। अब इस आधार पर आप उस ‘गिलास’ को ‘ग़ज़ल’ कहें या तेवरी, कोई अन्तर नहीं आता। हाँ जो रूप पर मोहित हैं और जिन्हें आत्मा की पहचान नहीं, उन मित्रों को शायद इसमें अन्तर दिखाई पड़े।
आपके तेवरी अभियान की सफलता की दुआ इसलिए कर रहा हूँ कि यह चाहे जिस नाम से भी हो, आप मेरी ही आवाज में आवाज मिला रहे हैं और वह आवाज आज के हर दलित, पीडि़त और शोषित इंसान की है।

Language: Hindi
64 Views
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