तेरे होने से ही तो घर, घर है
तेरे होने से ही तो घर, घर है
वर्ना लगता मकान खँडहर है
जीतने वाले को ये कहते सब
भाग्य का वो बड़ा सिकंदर है
किस्से मशहूर जिसके हँसने के
आंखों में उसकी ही समंदर है
उससे पूछो क्या होते हैं मौसम
जिसके सिर पर न छत न छप्पर है
अब न परवाह किसी के कष्टों की
भूमि संवेदना की बंजर है
चोट खाकर भी ढलता मूरत में
दिल भी रखता बड़ा ये पत्थर है
लोग असली छुपाते हैं चेहरा
जो है बाहर नहीं वो अंदर है
‘अर्चना’ अब उठा नहीं पाते
तेरी यादों का जो ये लश्कर है
डॉ अर्चना गुप्ता