तेरे सांचे में ढलने लगी हूं।
-तेरे सांचे में ढलने लगी हूं
जीवन की भाग-दौड़ में याद आती है तेरी मां
माना कि उम्र के पड़ाव मैं भी बढ़ रही हूं
मां बनके परिपक्व सी हो गई हूं।
फिर भी याद आती है तेरी मां।
परेशानी होती तो मैं आंसू बहाने लगती
पर,समझ नहीं आता मां,तुम परेशानियां में
अपने आंसू कहां छिपाती थी ??
हां, उदास तो कई बार देखा,,
पूछ लेते कभी हम आपसे
तो तुरंत मुस्करा कर टाल जाती थी।
मैं भी मुस्कुराने की कोशिश करती,
फिर और भी याद आती तेरी मां।
स्वास्थ्य बिगड़ जाता जब कभी तो
निढाल हो कर मैं तो गिर बिखर जाती,
और तुम अपनी तबियत ठीक नहीं होने भी
काम में व्यस्त रख नहीं किसी को बताती!!
तभी याद आती तेरी मां,
और पाकर हिम्मत तुमसे
अपने काम में लग जाती।
सरल स्वभाव, नरम लहजा
बातों में मिठास आपकी आवाज
सच में याद आती है तेरी मां,
धीरे धीरे मां तेरी जैसी बनने लगी हूं
तेरे ही सांचे में ‘ सीमा ‘ ढलने लगी हूं।
जीवन के हर मोड़ पर याद आती है तेरी मां।
जीवन के हर मोड़ पर याद आती है मां।।
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान