तेरे शहर में
कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में ,
हर शख़्स हुआ है ब़दग़ुमा तेरे शहर में ,
इंसां बन गए हैं फ़िरकाप़रस्तों की
कठपुतलियाँ तेरे शहर में ,
नाचते उनके इश़ारों पर फैला रहे
व़हम का ज़हर तेरे शहर में ,
इंसानिय़त पर सिय़ासत
भारी हो गई है तेरे शहर में ,
ग़ुऱबत में डूबे मज़लूम़ो पर सितम़
ढाए जा रहे हैं तेरे शहर में ,
रसूख़दार लूट लूट कर अपनी तिजोरी
भर रहे है तेरे शहर में ,
इंसां सरे बाज़ार नीलाम
हो रहे हैं तेरे शहर में ,
इंसाफ की नीयत बिकाऊ
बन चुकी है तेरे शहर में ,
इंसानियत कोने में दुब़की हुई
सिस़क रही है तेरे शहर में ,
ग़द्दा़रों की फौज बुलंदी पर है तेरे शहर में ,
वतनपऱस्ती का ज़ज़्बा ग़ुम है तेरे शहर में ,
बेईमानी और फ़रेबी का बाज़ार
ग़र्म है तेरे शहर में ,
जाने कहां ले जाएगी इंसा को ये
पैसे की हव़स तेरे शहर में ,
फिर खींच कर ले जाएगी तेरे बाशिंदों को
ग़ुलाम़ी की तरफ तेरे शहर में ,
तब ये रोश़न आज़ादी ना होगी ,
छा जाएगी ज़़ुल्म -ओ- तशद्दुद की
तीरग़ी हर सम़्त तेरे शहर में ।