तेरे रुख़ का शबाब कहते है
बहर्-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख्बून
वज्न- 2122 1212 22
* ग़ज़ल *
सब जिसे माहताब कहते हैं।
तेरे रुख़ का शबाब कहते हैं।।
बर्ग-ए-गुल सी है नाजुकी उनकी।
हम लबों को गुलाब कहते हैं।।
लोग आंखों से पी बहकते हैं।
चश्म ज़ामे शराब कहते हैं।।
गेसुओं से टपकती बूंदों को।
अब्र से गिरता आब कहते हैं।।
तेरी पाज़ेब की हुई रुनझुन।
बज रहा ज्यों रबाब कहते हैं।।
दूर होकर भी पास लगती हो।
क्या इसी को सराब कहते हैं।।
पढ़ सकोगे ” अनीश ” चेहरे को।
लोग इसको किताब कहते हैं।।
@nish shah
माहताब=चांद। रुख़=चेहरा।अब्र=बादल।चश्म=आंखें।आब=पानी।शबाब=सौन्दर्य।बर्ग ए गुल=फूलों की पंखुड़ी।लब=ओंठ।रबाब=वाद्य यंत्र(वीणा जैसा)।सराब=मृग तृष्णा।