तेरे मेरे रिश्ते
तेरे मेरे रिश्ते
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क्या करूं कुछ समझ नहीं पाता हूँ
जितना समझता, उतना ही उलझ जाता हूँ,
माना कि बड़ा सम्मान करती है तू मेरा
पर तूझे समझने में दिमाग लुप्त हो गया मेरा।
तू दूर होकर भी पास रहती है
मेरी हर गतिविधि पर पैनी नजर रखती है,
फिर भी तू बहुत दूर दिखती है।
वैसे तो तू भूतनी बन मुझको सताती है
मुझे डराती है रुलाती भी है
पर मेरे मन को पढ़ना भी तू जानती है।
तूझे और तेरे साथ अपने रिश्ते को
तू ही बता मैं क्या नाम दूं?
तू तो दादी अम्मा नजर आती,
बहुत खिझाती भी है
बहन बन प्यार दुलार भी तू ही करती है
बेटी का अधिकार भी जताती है,
नाज़ नखरे भी खूब दिखाती है
गुस्सा भी खूब दिलाती है
बस पीछा भर नहीं छोड़ती है।
क्योंकि दूर होने के हर रास्ते पर
तू चौकीदार बन बैठी रहती है
शायद अपने क़र्ज़ तू मुझसे वसूल लेना चाहती है।
जाने किस जन्म का कर्ज इस जन्म में
तू मुझसे वापस चाहती है
इसीलिए तो तू अपने साथ
हमसे रिश्ते निभाना चाहती है।
तभी तो तू मुझे हंसाती और रुलाती है
अपना हक अपने अंदाज में जताती है
मेरी छोटी सी पीड़ा पर भी
तू अनायास सहम सी जाती है,
पर रिश्ते की डोर मजबूती से
खुद थामे रखना चाहती है
बस यही बात मुझे जीवन का अहसास कराती है
और मेरी आंखें नम हो जाती हैं
तेरे मेरे रिश्ते की बस यही
मात्र यही बात समझ में आती है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित