तेरे दुःख दर्द कितने सुर्ख है l
तेरे दुःख दर्द कितने सुर्ख है l
जनता अब भी तू इतनी मुर्ख है ll
तुझमे ना समझ ओ बुद्धी आती l
हर बार खुद ही खुद, लुटती जाती ll
ये लुटेरे पाए, सरेआम सुख है l
जनता अब भी तू इतनी मुर्ख है ll
जो बटे बटे, सहज है लुटे लुटे l
बिन एकता, डर डर है डटे डटे ll
एसे में आते रहते दुःख है ll
जनता अब भी तू इतनी मुर्ख है ll
पल पल हर डगर, माया का घेरा l
मानव मन, विषय प्यास का डेरा ll
निकल निकाल, जीवन सत्य प्रमुख है ll
जनता अब भी तू इतनी मुर्ख है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न