तेरे खेल न्यारे
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* तेरे खेल न्यारे *
हादसा था नज़र तुझसे मिलाना।
तुख़म था नज़रे मिला कर डूब जाना।
बेकसी के तालाब में गोते लगाना।
जिस्म के बनावटी इत्र का मुरदीद होकर।
ग़ज़ल अपनी तुझको सुनाना।
हादसा था नज़र तुझसे मिलाना।
तुख़म था नज़रे मिला कर डूब जाना।
आशना बन कर इशक का क्या मिला।
जुल्म जेरो ज़बर का हमने सहा।
फितन्न गर से बुर्जियों का खेल देखा।
जर्रे जर्रे पर खुदाया बे – मेल देखा।
हादसा था नज़र तुझसे मिलाना।
तुख़म था नज़रे मिला कर डूब जाना।
तीर पर बैठा रहा साथ जब तलक तेरे रहा ।
एक पल का चैन भी तो, या-खुदा
मुझको न आया, घर को खोया, नींद खोई ।
याद हो गर तो वो मुझको दिला
जो रात मैंने, हो सुख की सोई |
हादसा था नज़र तुझसे मिलाना ।
तुख़म था नज़रे मिला कर डूब जाना ।
जिस्म के बनावटी इत्र का मुरदीद होकर ।
ग़ज़ल अपनी तुझको सुनाना ।