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21 Feb 2024 · 1 min read

तेरे उल्फत की नदी पर मैंने यूंँ साहिल रखा।

तेरे उल्फत की नदी पर मैंने यूंँ साहिल रखा।
सिर्फ़ तेरे वास्ते तैयार अपना दिल रखा।

एक कवि वैराग्य को ऐसे दिखाया है यहांँ।
इश्क़ की बुनियाद पर आपको मंज़िल रखा।

मुझको जो होना था तेरे वास्ते मैं हो गया…
तुमने मेरे राह को बस बेवजह मुश्किल रखा।

मैं यहांँ शरीयत से लड़कर पैरवी करता रहा….
उसने मुझको दी तख़ल्लुस नाम फिर ज़ालिम रखा।

तुम तुम्हारी आंँख की गुस्ताखियांँ जारी रखो…
हमने आंँखों को यहांँ अंँधेरों के काबिल रखा।

फिर यहांँ बस ईश्क पर तक़रीर देने आ गया।
और अपने लफ़्ज़ में बस तुमको ही शामिल रखा।

देखकर मैं हूंँ दंग इक शख़्स पर कारीगरी
रब ने जिससे जोड़कर मुझको यूंँ कामिल रखा।

दीपक झा रुद्रा

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