तेरे असर में
121-22 121-22
गीत
मैं आजकल हूँ तेरे असर में,
न कोई दूजा है अब नज़र में।
तेरी बदौलत ये साँस चलतीं,
तू ही बसा है मेरे ज़िगर में।।
जमाने भर में भटक चुकी हूँ,
तुम्हारे दर पे मैं आ रुकी हूँ।
नहीं मिला जब सुकुन दिल को,
लो आ गयी फिर तेरे शहर में।।
कहो तो तारों के पार चल दूँ,
थके से कदमों को और बल दूँ।
जो थाम लो तुम मेरी कलाई,
नहीं रुकूँगी तो फिर सफर में।।
जो प्रेम रब से अटूट करते,
किसी भी हालात से न डरते।
पिया मुहब्बत में विष का प्याला,
मरी न मीरा किसी जहर में।।
✍? श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव