{{ तेरी ही खुशबू आती है }}
मेरी ज़िंदगी मेरी कहाँ सुनती है,
कठपुतली सी मुझे रोज़ नचाती है।
मोहब्बत में सब नाम लेते हैं कृष्ण का,
मेरी ज़ुबा नाम तुम्हारा लेती है।
तूने आशिक़ी भी की मुझे अब्र की तरह,
जब चाहा छाव हो, तभी बारिश होती है।
तुमसे मिल कर जब भी आते है हम,
मेरे बदन से तेरी ही खुशबू आती है।
तू मुझसे छूट कर बसना चाहता हैं किसी और निगाह में,
मेरे लबों पे अब सिर्फ खामोशी रहती है।
क़दीम इश्क़ है मेरा दर्द से,
बदन पिज़र सी महसूस होती है।
बहुत चाहा के रोक लू खुशियो को आँचल में,
लेकिन वो कहा कभी रुकती है।
आज जो कह दिया अपने हक़ में कुछ,
सब को मेरी ये ज़ुबा चुभती है।