तेरी हर मासूमियत पर मेरा गजल निकला है
ये चाँद जो मेरी गलियों में आजकल निकला है
मानों मेरी राहतों का सफर चल निकला है
देखकर तुझे, कही होश न गवा बैठूं
तो ये दिल तेरी ओर सम्हल-सम्हल निकला है
अजब खूबसूरती का नजारा है तुझमें
जैसे धूप में कोई कमल खिल निकला है
मेरी आरजुये तुझ तक हीं हैं
ऐ सनम तेरे नाम मेरा हर एक पल निकला है
तू खुदा सा लगने लगा है अब तो
तेरी हर मासूमियत पर मेरा गजल निकला है