* तेरी सौग़ात*
बुरा मैं हो ही नहीं सकता
जिससे तू प्यार करे,
भला वो बुरा कैसे हो सकता है
जो सुबह शाम तुझे याद करता है
इससे ज़रूरी काम कोई नहीं करता
फिर भला वो बेकार कैसे हो सकता है
मेरी संगत भी तो बुरी नहीं है
जिसका साथी तुझसा हो
वो बुरी संगत में कैसे पड़ सकता है
है मुझे यक़ीन तुम पर ख़ुद से ज़्यादा
जिसका यक़ीन तुझमें हो
वो दूसरों की बातों में कैसे आ सकता है
मेरे दिल में नफ़रत नहीं किसी के लिए भी
जिस दिल में प्रेम की मूरत रहती है
वो दिल कभी नफ़रत नहीं कर सकता है
है ये ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत मेरी
जिसमें तू मेरे साथ दे रही है
उससे खूबसूरत और क्या हो सकता है
नहीं ज़रूरत मुझे किसी इत्र की
ये ख़ुशबू का अहसास तो अदभुत है
जो सिर्फ़ तेरे पास होने पर मिल सकता है।