तेरी शुभ्र धवल मुसकान
मेरे गम के तम पर तेरी,
शुभ्र धवल मुस्कान !
चाँदनी बिखर जाती है,
ज्यों अँधेरी रात में !
स्वप्न सुनहरे आ ह्रदय में,
गम के बादल देते चीर !
कौंधती है बिजली रह- रह,
ज्यों मौसम बरसात में ।
अरमां चाहत ख्वाब सभी,
ढक लेती गम की चादर !
छिप जाता माया का वैभव,
ज्यों निशा के गात में !
कह देता हर राज दिल का,
आँखों से बरसता पानी !
मिल जाता मर्म जीवन का,
ज्यों मुरझाए पात में !
सुधबुध बिसरा निज तन की,
बँध गया मन प्यार में उसके !
खुद बन्दी हो जाता भँवरा,
आकर ज्यों जलजात में !
– डॉ० सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ० प्र० )