तेरी याद में
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
@ तेरी याद में @
तेरी याद में
मेरी आन्खों की चमक
दिन प्रतिदिन
जब तुम मेरे बारे में
सोचती हो
जब तुम मेरी
तरफ देखती हो
मुझे छूती हो
मेरे व्यक्तित्व को
और मेरा नाम लेकर
पुकारती हो
तब तब तुम
मेरे पास आ जाती हो
मुझे कस के बाजुओं में
अपने दिल की धड्कने सुनाती हो
फिर हमारे हाँथ मिलते हैं ,
शिकायतें करते है फिर
भूल कर सारे शिकवे
हम गले मिलते हैं
एहसास भावों के तब
बाँध तोड़ कर
आन्सुओं के रास्ते बह निकलते हैं
मैं गुद्गुदाता हुँ तुमको
नही देख सकता
रोता हुआ , हँसाने को
और तुम गुडि मुड़ी होकर
एक छोटी बच्ची
सी बच्ची सी
मेरे बाहु पाश में मचलती हो
न निकलने की चाहत में
अनचाही कोशिश करती
हुए शरमाई सी लजाई सी
एक टक मेरी आँखो में देखते हुई
लेकिन प्यार की मादकता से
गुलाबी गुलाबी मन्द मन्द
मुस्कुराती हुई सी
हम दोनो इन सुन्दर सुन्दर भावों
से मदमाते हुए
एक साथ् अचानक
एक दूसरे से पूंछ बैठते हैं
क्या हुआ —–ऐसा अकसर होता है
हम दोनो के साथ्
जब हम एक साथ् होते है
फिर हमारी हंसी की खुशबु
फिज़ा में बिखर जाती है
मैं पागलों सा ढूँढता हुँ
पर अब तुम कहाँ
बस मैं और मेरा तकिया
भीगा भीगा रह जाता है
रात की तनहाई फिर मुझे
तेरी याद में रुलाने लगता है