यादों को मीरा बनाया गया
तेरी यादों को मीरा बनाया गया
ज़ह् र धोखे से उनको पिलाया गया
फिर रिहाई का सुख रास आया नहीं
आशियां जब क़फ़स को बनाया गया
बेरुखी से वह मुंह मोड़ कर चल दिया
आइना जब किसी को दिखाया गया
इस क़दर दुश्मनी थी मिरे नाम से
मेरी ग़ज़लों को क्यों गुनगुनाया गया
दोस्ती हम कहां तक निभाते हुजूर
सर पे इल्जाम ऐसा लगाया गया
इक खुशी है यह दुनिया तो रौशन हुई
मुझको दीपक समझकर जलाया गया
फिर तो साया भी मुझसे खफा हो गया
सर पे सूरज को ‘अरशद’ बिठाया गया