“तेरी मन्नतों के धागे माँ”
तेरी मन्नतों के धागे
मेरी उम्र के साथ बढ़ रहे है माँ
एक तेरे ही प्यार के चाँद की
कभी अमावस नहीं होती माँ।
तेरे होने से जिंदा है मुझमें बचपन
कुछ सीखने की ललक
अपने सफेद बालों और झुर्रियों मे
तू कितनी सुन्दर दिखती है माँ।
जब तू यह कहती है
मैं सम्मान हूं नाज हू तेरा
तू सोच भी नहीं सकती
उस एक पल मे सदियाँ जी लेती हूं मैं माँ।
डाँ सीमा रानी, गाजियाबाद