तेरी मधुर यादें
तेरी मधुर यादें
तेरे संग बीती जो मीठी मीठी यादें है
मेरे काव्यसंग्रह के वो नवगीत बन गये
काल के कपाल पर गीत नये गाते हुए
कंठहार बन मेरे सुर मे संवर गये ।
तेरे गेसुओं की महक आज याद है
उसमें चमकता गुलाब आज याद है
सुरमई शाम की रूहानी नदी याद है
आज भी मिल सब करे फरियाद है
बैठ के किनारे पे जो अठखेली होती थी।
बीच बीच तेरी जो डिठौली खूब होती थी
वारि की धार को वह पल याद है।
कैसे तुम बिछल जल बीच मे समायी थी।
आगा पीछा सोचा नही जल में मैं कूद पड़ा
तेरे संग मैं भी तब डूबने को भया था
अचानक से पकड़ लिया तूने मेरी बाह को
खींच कर समेत खुद बाहर को किया था।
ऐसी मधुरिम यादों की अनंत ही कहानी है
आज बीच राह में जवानी मेरी खड़ी है
खाई है इधर, उधर कुवाँ भी पड़ा है
जीवन की गाड़ी मेरी बेलौस पड़ी है।
बीत गये माह कितने दिन भी निकल गये
यादों की धुंध में निरीह आज पाता हूँ
जितना भुलाना चाहू प्रिये तुम आज तुमको
उतना ही खुद को बेचैन आज पाता हूँ।
बीत रहा जीवन उन यादों के छावं तले
प्रेरित जीवन ज्योति हो जिससे ही जलता है
बदलना था जिसको हकीकत में साथी सुनो
आज भी ख्वाब बन सगरो विचरता है
दामिनी के सप्तवर्ण भाते नहीं मुझको
गरज बादलो की भी खूब ही डराती है
लक्ष्मण रेखा खींची है जो मध्य में हमारे
रचिको न निर्मेष मुझको वो भाती है।
निर्मेष