तेरी भक्ति से क्या फायदा..?
तेरी आशिकी में
क्या मिलेगा मुझको
सब नियति ही है
तो तेरी भक्ति में
क्या मिलेगा मुझको ..?
क्या करूँगा मोक्ष का
पृथ्वी से कहीं दूर
स्वर्ग या फिर नर्क का
मुझको तो प्यारी है जमीन
यही भक्ति मेरी और पूज्यनीय ।
तू ना दिखा कभी भक्त को
तू डरा ना सका किसी क्रूर को
ये कल्पनाओं का जगत है
कहीं अल्ल्लाह
कहीं ब्रह्म में अलख है ।
ना तेरा कोई रूप है
ना तेरा कोई रंग है
ना तू बदबू
ना तू खुशबू
मैं क्या करूँगा इस अंधकार का ।
कर्म ही मेरी विजय है
सन्तुष्टि मेरे दिल मे है
तृष्णा मेरी शत्रु है
प्रेम मेरा धर्म है
क्या करूँगा मंदिर-मस्जिद और कर्मकांड का ।।