तेरी फ़ितरत, तेरी कुदरत
तेरी फ़ितरत, तेरी कुदरत, तू जाने मेरे मौला
हर कोई अपने ख़ुदा को, ख़ुद पहचाने मेरे मौला
तेरी फ़ितरत…….
बात वही सबने कही है, मीत वही हर रीत वही है
हर शय के कण-कण में रचा, अतिपावन संगीत वही है
लड़ते हैं क्यों दीवाने, एक न माने मेरे मौला
तेरी फ़ितरत…….
जब तक है ईमान तुम्हारा, तब तक ही तुम मानव हो
रक्त पिपासु अगर बन जाओ, फिर तो तुम भी दानव हो
है कोई ऐसा, जो तुझे दिल से जाने मेरे मौला
तेरी फ़ितरत…….
पाप कमाये क्यों पगले तू, ये सराए दो दिन को है
मेला ये दो पल का, काया ये किराए दो दिन को है
भेजा तूने सबको ही ये समझाने मेरे मौला
तेरी फ़ितरत……..