तेरी द्रौपदी को तो कृष्न
आज अपने मन को मैं समझाऊं कैसे
भटक रही दर दर जा शान्ति पाऊं कैसे
ह्र्दय भी कांप जाता सुनकर ये आवाज
आकर मेरे प्रिय सखा बचाओ मेरी लाज
बहन तेरी सिसकती तुझे हाथ जोड़ बुलाये
दुराचारी इस भरी सभा में मेरी लाज उड़ाए
जाने कैसी विपत्तियों ने आकर मुझको घेरा
तेरी द्रोपदी को तो कृष्ण यहाँ पे सहारा तेरा
मेरी साड़ी के पल्लू की राखी स्वीकार करो
मुरली मनोहर तुम आके आज मेरें कष्ट हरों
सुना मैंने जब शत्रु को भी राखी भिजवाई है
रक्षा करने दौड़ पड़ें बने जो राखी बंद भाई है
आज भारतवर्ष की बहु आशा से रही पुकार
व्यथित है मेरा ह्र्दय दे दे अपना दर्श साकार
हम दोनों है गोविंदा एक ही युग की संतान
मैं हूँ तेरी सखी पंचाली तु मेरा कृष्ण भगवां
चला के सुदर्शन मिटा दे तिमिर और अज्ञान
मिटा दे आज कौरवों का तू आके अभिमान
अशोक की टूटी फूटी स्तुति को करो स्वीकार
देश प्रेम का मतवाला नहीं चाहता पुरूस्कार
अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से