तेरी तस्वीर
तेरी तस्वीर पीछा नहीं छोड़ती
बात करने का मौका नहीं छोड़ती
मेरे अंदर समाई है तू इस क़दर
साँस आने का रस्ता नहीं छोड़ती
हर घड़ी सामने मेरे रहने लगी
एक सूरत जो शीशा नहीं छोड़ती
हर बला से मुझे वो बचाती रही
जो गज़ल मेरी गाना नहीं छोड़ती
जानती है दिलों के जो हालात हैं
फिर मुझे क्यों सताना नहीं छोड़ती
गर मुहब्बत की लहरें जवां हो गई
फिर किनारों पे नौका नहीं छोड़ती
अजनबी भी नहीं है न पहचान है
नाम ‘सागर’ लगाना नहीं छोड़ती
—-सागर